drravinder

Testimonial #14

यह पत्र सुकृत्य की ओर से उनके डॉ , उनके अंकल डॉ विकास सिंघल जी के लिए एक भावना है । उसकी यह मन की भावना उनके पापा रवीन्द्र रवि ने कलम के माध्यम से उकेरी है ।
डॉ अंकल ,
मैं आपका मन और आत्मा दोनों से शुक्रिया करना चाहता हूँ , इसके कारण कई हैं । जब मई 2015 में , मेरे पापा , मुझे आपके पास लेकर आए थे , वे बहुत परेशान , मायूस , और मेरी बीमारी की वजह से वे खुद भी बीमार होते जा रहे थे । वे भी थक चुके थे , मुझे उनकी बातचीत सुनते सुनते , मेरी बीमारी का नाम पता चल चुका था । इसे डॉक्टर्स , ऑस्टियोम्य्ल्यटिस के नाम से पुकारते हैं । यह हड्डियों में जो मज्जा होता है , उसकी सूजन की एक नाइलाज़ बीमारी के तौर पर इसे अल्लोपथिक डॉक्टर्स लेते हैं । इसका कारण भी ज्यादा तर वे खुद ही होते हैं , क्यूंकी वे लोग इन्फ़ैकशन होने के कारणों का ध्यान नहीं रखते और कोई ना कोई गलती वे कर बैठते हैं , या तो सर्जरी के दौरान या उसके बाद । मेरे केस में भी ऐसा ही हुआ । डॉ आनंद , कुरुक्षेत्र में मेरी सर्जरी हुयी , और डॉक्टर ने कोई 9 इंच पट्टी मेरी बाजू में , ऑपरेशन के दौरान छोड़ दी- जिनके खिलाफ आज भी केस चंडीगढ़ की उपभोक्ता कमिशन में लंबित है । लेकिन , हमारे देश का यह दुर्भाग्य है , कि ये लोग कभी भी , अपनी गलती नहीं स्वीकारते और नाही क़ानून में ऐसे डॉक्टर्स के खिलाफ कोई प्रवाधान है । मार्च 2013 को , जब घाव नहीं भरा , लगभग , चोट और ऑपरेशन के चार महीने तक भी- तब मेरे पापा मुझे कई दूसरे बड़े डॉक्टर्स के पास लेकर गए । पापा –मम्मी बहुत परेशान थे , और पापा जब बाहर विदेश में पढ़ा रहे थे , तो इसी की वजह से उन्हे यहाँ मेरे पास आना पड़ा था । और उन्हे नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी। वे फिर इंडिया आए और हमने अपना घर भी बेच दिया जो पापा मम्मी ने बड़े प्यार से बनाया था । यह साल 2013 की बात है । हमारा घर सैक्टर 3 , कुरुक्षेत्र 1410 था – लेकिन पापा ने कभी भी किसी से कोई हेल्प नहीं मांगी , इसीलिए मुझे अपने पापा पर बहुत गर्व और प्यार है , क्यूंकी वो हमेशा मुझे भी इसी तरह समझाते हैं, एक कहते हैं , झूठ नहीं बोलना –और दूसरा कहते हैं , कभी नहीं निराश होना । पापा मुझे बहुत सी , प्रेरणा दायक कहानियाँ सुनाते , ताकि मेरा मनोबल ना गिरे । और मैं , जल्दी इस परेशानी और बीमारी से उभर पाऊँ- मुझे याद है , एक बार हम , मुज्जफरनगर , यूपी , मे गए थे , कुरुक्षेत्र से वहाँ तक का सफर बहुत लंबा था – लगभग 6 घंटे एक तरफ । हमारे पास उस समय आल्टो के-10 होती थी , तो पापा ने कुछ पेट्रोल की लागत बचाने के लिए , अपने एक दोस्त से काले रंग की फोर्ड फिगों ली थी । हमारे साथ , कुरुक्षेत्र से एक और अंकल गए थे , जिंहोने हमे डॉक्टर मुकेश जैन के बारे बहुत बताया था , उनके पास मेडिकल की सभी डेग्रियाँ हैं , लेकिन कुछ ना तो बात करने पता था , और ना ही विश्वास पैदा करने का तरीका , जब डॉक्टर ने , यह कहा , कि यह बीमारी ठीक ही नहीं हो सकती , तो , पापा –मम्मी बहुत रोये । और बड़े निराश हो कर , वापिस कुरुक्षेत्र कि ओर चल दिये , यह सफर ओर , लंबा और थका देने वाला हो गया । मैं , पापा की सभी बातें , अच्छे से जानता हूँ , वे परेशानी में बहुत खुश होकर हमे भी खुश रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं । बड़े ही मायूसी के साथ हम वहाँ से भी आ गए । इस से पहले जून -2013 में , डॉक्टर मित्तल , जो पटियाला से हैं , उन्होने ये पट्टी निकाल दी थी , और , बिना ऑपरेशन के खड़े-खड़े ही , पापा तो लगभग –जैसे बेहोश ही होने वाले थे । मैं , पापा , मम्मी , नानी और दीपु मामा , वहाँ थे । नानी ने मेरी बड़ी ही देखभाल की उस दौरान और कोई एक हफ्ते हम वहाँ रहकर आ गए । फिर , ये “सायनस” बन गया था , जिसमे से रह रह कर , कुछ ना कुछ निकलता रहता था , कभी खून , कभी पस , कभी हड्डी के बारीक छोटे छोटे टुकड़े । जिसे पापा बड़े ही प्यार से और बड़े ध्यान से मेरी पट्टी करते , और फिर इंटरनेट पर किसी अच्छे डॉक्टर की तैलाश में जुट जाते । एक डॉक्टर मिले , जिनका बड़ा ही नाम है , और वे हैं – डॉ अमर सरीन , जो दिल्ली से हैं , और देश के बड़े ओर्थोपेडिक सर्जन भी हैं , उन्होने बड़े-बड़े केसेस हल किए हैं , उन्होने भी शुरू में , अंटीबोयटिक्स का कोर्स शुरू करवा दिया , उस दौरान हम तीन बार दिल्ली गए , और उन्होने कहा बस अभी देखो , लेकिन पापा से वो घाव नहीं देखा जाता था । फिर हम चंडीगढ़ सैक्टर 32 , गए , जहां हम , डॉ पी न गुप्ता से मिले , वे बहुत बड़े डॉक्टर हैं , लेकिन उनके पास सभी को ठीक से देखने का टाइम नहीं , यदि आपके पास इच्छी सिफ़ारिश है , तो टाइम मिल सकता है , बहरहाल पापा , ने बड़ी मुश्किल से उनसे टाइम लिया , उन्होने , भी कहा “जस्ट वेट अँड वॉच” सो हम फिर कुरुक्षेत्र आ गए । इस बीच , कंही से पापा को पता चला , कि हाइपरबैरिक ऑक्सिजन थेरपी से ऑस्टियोम्यलिटिस का इलाज संभव है , हम 30 दिन लगातार , यह थेरपी हमें एक , रीहब्लिटेशन सेंटर खरड़ में मिली । लगभग दिन का 2500 रूपय का ख़र्च था । हम अपनी रिट्ज कार में , डेलि वहाँ जाते थे , पापा , मेरे स्कूल 2 बजे के बाद मुझे , वहाँ ले जया करते थे , और बीच में , मेरा फ़ेवरट स्पॉट होता था , “हल्दीराम”, मुझे इसका पूरा वातावरण बहुत पसंद है , मम्मी कहती रहती थी , क्यूँ –रोज़ रोज़ यहाँ , पैसे ख़र्च करते रहते हो । पर , पापा इस सींपली ग्रेट” आई लव यू पापा”। पापा , कभी कभी , मम्मी पे गुस्सा भी करते थे , लेकिन बस ऊपर के मन से। वे बहुत परेशान थे। मैंने उन्हे कई बार गुस्से में देखा था । वो दिन , जब मेरे हाथ से पट्टी निकली , जो डॉक्टर भूल गए थे , पापा , सीधे , पटियाला से , आनंद ओर्थोपेडिक कुरुक्षेत्र पहुंचे , और , उन्होने जितना उन दोनों डॉक्टर्स को कहा , डॉ संजय सोनी , जिसने मेरी प्लास्टिक सर्जरी की थी , और डॉ हिमांशु आनंद । वहाँ , कितने ही लोग थे , पापा ने उनको , “उनके पापा” की तरह इतना कहा , कि शायद ही किसी ने उनको इतना बोला होगा । पापा , बोलते रहे , किसी कि भी हिम्मत नहीं हुई कि पापा को चुप करवा सकते । क्या नहीं बोला , सब कम से कम 15-20 लोग इस बात के गवाह हैं । बड़ी मुश्किल से वहाँ से पापा को सभी ले आए । इसी बीच हमने अपना इतना बड़ा घर बेचकर , नजदीक ही किराए पर घर ले लिया । वहाँ से हमारा घर बड़े ही आराम से दिखाई देता था । इस घर का नंबर 1400 था । मात्र दस घर छोडकर- मम्मी , लगभग हर रोज़ , देख कर रो ही पड़ती थी । पापा , अक्सर कहते हैं । तीन तरह के लोगों को हमेशा याद रखो , पहले वो, जिनकी वजह से आप मुश्किल में आए , दूसरे , जो लोग आप को परेशानी में अकेला छोड़ कर चले गए , चाहे अपने हो या पराए , वो भी पराए ही हो गए , शायद , किराए के मकान पर , किसी को भी आना पसंद न था । और तीसरे वो , जो सबसे अहम् हैं , जिंहोने किठनाई के वक़्त आपका साथ नहीं छोड़ा । लेकिन तीसरी तरह के लोग मिलते कहाँ हैं ?
पापा सभी से , बस मेरे बारे में ही ओर इस बीमारी को ही लेकर बात करते रहते थे , इस बीच पापा के एक दोस्त , जो पापा का बहुत आदर करते हैं , डॉ कुलदीप , कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं , उन्होने डॉ विकास अंकल , के बारे में बताया और पापा मुझे उनके पास ले गए । उन्होने अपने भाई की बीमारी के बारे में बताया , और कहा कि , मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा , और उन्होने मुझे दवाई देनी शुरू की । होमियोपैथी में , पापा का बहुत विश्वास है , और पापा , खुद भी बहुत पढ़ते रहते हैं । डॉ कुलदीप , जिस तरह से पापा की मदद की , अभी तक कोई भी नहीं कर पाया था । और मैंने बड़ी ईमानदारी से , जैसे पापा ने कहा , वैसे दवाई लेनी शुरू की । डॉ अंकल और अंजलि दीदी ने , बड़ी मेहनत से दवाई बनाते और मुझे देते , आज लगभग 6 महीने हुये हैं , बीच में , कई बार , पस , और हड्डी के छोटे छोटे टुकड़े निकलते रहे , लेकिन मेरा, मम्मी और पापा का बहुत विश्वास था कि मैं ठीक हो जाऊंगा , और जैसा , डॉ अंकल ने कहा था , मैं पहले दिन सी ही अच्छा महसूस करने लग गया था । डॉ अंकल ने मुझे कभी भी बीमार नहीं कहा , और आज मैं , बिल्कुल ठीक हूँ , मेरा होमियोपैथी में बहुत आस्था है , जिस बीमारी का अलोपैथी में , कोई ईलाज़ नहीं , वो डॉ विकास अंकल ने , उस बीमारी को होमियोपैथी से ठीक कर दिया । और , पापा आज वापिस अपने काम पर , मिडिल ईस्ट में भाषा विज्ञान पढ़ा रहे हैं ।
बस , डॉ अंकल ने मेरे साथ साथ पापा का भी ईलाज़ कर दिया , और वे अपने काम पर खुश हैं । मैं परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ , कि डॉ अंकल और उनके परिवार में सदा खुशी और सेहत का वास रखे ॥
आपका
सुकृत्य

drravinder

Dr. Vikas Singhal B.Sc. ,B.H.M.S., (B.F.U.H.S.) D.N.H.E.

Dr. Vikas Singhal, a classical homeopath, has been practicing and treating patients now for the last 20 years, mainly in Chandigarh and Mohali (Punjab), India. Dr. Vikas is having a rich and varied clinical experience with a number of national and international achievements in his credit from presenting different case study papers on osteomyelitis, i.b.s. and cancer of various types in not only a new and innovatively designed method of applying homeopathy but with a blend of nutrition and spirituality. He applies all types of energy healing theories and practices together to give relief to all patients without being prejudiced. Dr. Vikas has vivifying energy, compassion, and passion to take homeopathic treatment to altogether new heights and avenues. he is known for his unique and peculiar style of case taking with the inclusion of diet.