यह पत्र सुकृत्य की ओर से उनके डॉ , उनके अंकल डॉ विकास सिंघल जी के लिए एक भावना है । उसकी यह मन की भावना उनके पापा रवीन्द्र रवि ने कलम के माध्यम से उकेरी है ।
डॉ अंकल ,
मैं आपका मन और आत्मा दोनों से शुक्रिया करना चाहता हूँ , इसके कारण कई हैं । जब मई 2015 में , मेरे पापा , मुझे आपके पास लेकर आए थे , वे बहुत परेशान , मायूस , और मेरी बीमारी की वजह से वे खुद भी बीमार होते जा रहे थे । वे भी थक चुके थे , मुझे उनकी बातचीत सुनते सुनते , मेरी बीमारी का नाम पता चल चुका था । इसे डॉक्टर्स , ऑस्टियोम्य्ल्यटिस के नाम से पुकारते हैं । यह हड्डियों में जो मज्जा होता है , उसकी सूजन की एक नाइलाज़ बीमारी के तौर पर इसे अल्लोपथिक डॉक्टर्स लेते हैं । इसका कारण भी ज्यादा तर वे खुद ही होते हैं , क्यूंकी वे लोग इन्फ़ैकशन होने के कारणों का ध्यान नहीं रखते और कोई ना कोई गलती वे कर बैठते हैं , या तो सर्जरी के दौरान या उसके बाद । मेरे केस में भी ऐसा ही हुआ । डॉ आनंद , कुरुक्षेत्र में मेरी सर्जरी हुयी , और डॉक्टर ने कोई 9 इंच पट्टी मेरी बाजू में , ऑपरेशन के दौरान छोड़ दी- जिनके खिलाफ आज भी केस चंडीगढ़ की उपभोक्ता कमिशन में लंबित है । लेकिन , हमारे देश का यह दुर्भाग्य है , कि ये लोग कभी भी , अपनी गलती नहीं स्वीकारते और नाही क़ानून में ऐसे डॉक्टर्स के खिलाफ कोई प्रवाधान है । मार्च 2013 को , जब घाव नहीं भरा , लगभग , चोट और ऑपरेशन के चार महीने तक भी- तब मेरे पापा मुझे कई दूसरे बड़े डॉक्टर्स के पास लेकर गए । पापा –मम्मी बहुत परेशान थे , और पापा जब बाहर विदेश में पढ़ा रहे थे , तो इसी की वजह से उन्हे यहाँ मेरे पास आना पड़ा था । और उन्हे नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी। वे फिर इंडिया आए और हमने अपना घर भी बेच दिया जो पापा मम्मी ने बड़े प्यार से बनाया था । यह साल 2013 की बात है । हमारा घर सैक्टर 3 , कुरुक्षेत्र 1410 था – लेकिन पापा ने कभी भी किसी से कोई हेल्प नहीं मांगी , इसीलिए मुझे अपने पापा पर बहुत गर्व और प्यार है , क्यूंकी वो हमेशा मुझे भी इसी तरह समझाते हैं, एक कहते हैं , झूठ नहीं बोलना –और दूसरा कहते हैं , कभी नहीं निराश होना । पापा मुझे बहुत सी , प्रेरणा दायक कहानियाँ सुनाते , ताकि मेरा मनोबल ना गिरे । और मैं , जल्दी इस परेशानी और बीमारी से उभर पाऊँ- मुझे याद है , एक बार हम , मुज्जफरनगर , यूपी , मे गए थे , कुरुक्षेत्र से वहाँ तक का सफर बहुत लंबा था – लगभग 6 घंटे एक तरफ । हमारे पास उस समय आल्टो के-10 होती थी , तो पापा ने कुछ पेट्रोल की लागत बचाने के लिए , अपने एक दोस्त से काले रंग की फोर्ड फिगों ली थी । हमारे साथ , कुरुक्षेत्र से एक और अंकल गए थे , जिंहोने हमे डॉक्टर मुकेश जैन के बारे बहुत बताया था , उनके पास मेडिकल की सभी डेग्रियाँ हैं , लेकिन कुछ ना तो बात करने पता था , और ना ही विश्वास पैदा करने का तरीका , जब डॉक्टर ने , यह कहा , कि यह बीमारी ठीक ही नहीं हो सकती , तो , पापा –मम्मी बहुत रोये । और बड़े निराश हो कर , वापिस कुरुक्षेत्र कि ओर चल दिये , यह सफर ओर , लंबा और थका देने वाला हो गया । मैं , पापा की सभी बातें , अच्छे से जानता हूँ , वे परेशानी में बहुत खुश होकर हमे भी खुश रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं । बड़े ही मायूसी के साथ हम वहाँ से भी आ गए । इस से पहले जून -2013 में , डॉक्टर मित्तल , जो पटियाला से हैं , उन्होने ये पट्टी निकाल दी थी , और , बिना ऑपरेशन के खड़े-खड़े ही , पापा तो लगभग –जैसे बेहोश ही होने वाले थे । मैं , पापा , मम्मी , नानी और दीपु मामा , वहाँ थे । नानी ने मेरी बड़ी ही देखभाल की उस दौरान और कोई एक हफ्ते हम वहाँ रहकर आ गए । फिर , ये “सायनस” बन गया था , जिसमे से रह रह कर , कुछ ना कुछ निकलता रहता था , कभी खून , कभी पस , कभी हड्डी के बारीक छोटे छोटे टुकड़े । जिसे पापा बड़े ही प्यार से और बड़े ध्यान से मेरी पट्टी करते , और फिर इंटरनेट पर किसी अच्छे डॉक्टर की तैलाश में जुट जाते । एक डॉक्टर मिले , जिनका बड़ा ही नाम है , और वे हैं – डॉ अमर सरीन , जो दिल्ली से हैं , और देश के बड़े ओर्थोपेडिक सर्जन भी हैं , उन्होने बड़े-बड़े केसेस हल किए हैं , उन्होने भी शुरू में , अंटीबोयटिक्स का कोर्स शुरू करवा दिया , उस दौरान हम तीन बार दिल्ली गए , और उन्होने कहा बस अभी देखो , लेकिन पापा से वो घाव नहीं देखा जाता था । फिर हम चंडीगढ़ सैक्टर 32 , गए , जहां हम , डॉ पी न गुप्ता से मिले , वे बहुत बड़े डॉक्टर हैं , लेकिन उनके पास सभी को ठीक से देखने का टाइम नहीं , यदि आपके पास इच्छी सिफ़ारिश है , तो टाइम मिल सकता है , बहरहाल पापा , ने बड़ी मुश्किल से उनसे टाइम लिया , उन्होने , भी कहा “जस्ट वेट अँड वॉच” सो हम फिर कुरुक्षेत्र आ गए । इस बीच , कंही से पापा को पता चला , कि हाइपरबैरिक ऑक्सिजन थेरपी से ऑस्टियोम्यलिटिस का इलाज संभव है , हम 30 दिन लगातार , यह थेरपी हमें एक , रीहब्लिटेशन सेंटर खरड़ में मिली । लगभग दिन का 2500 रूपय का ख़र्च था । हम अपनी रिट्ज कार में , डेलि वहाँ जाते थे , पापा , मेरे स्कूल 2 बजे के बाद मुझे , वहाँ ले जया करते थे , और बीच में , मेरा फ़ेवरट स्पॉट होता था , “हल्दीराम”, मुझे इसका पूरा वातावरण बहुत पसंद है , मम्मी कहती रहती थी , क्यूँ –रोज़ रोज़ यहाँ , पैसे ख़र्च करते रहते हो । पर , पापा इस सींपली ग्रेट” आई लव यू पापा”। पापा , कभी कभी , मम्मी पे गुस्सा भी करते थे , लेकिन बस ऊपर के मन से। वे बहुत परेशान थे। मैंने उन्हे कई बार गुस्से में देखा था । वो दिन , जब मेरे हाथ से पट्टी निकली , जो डॉक्टर भूल गए थे , पापा , सीधे , पटियाला से , आनंद ओर्थोपेडिक कुरुक्षेत्र पहुंचे , और , उन्होने जितना उन दोनों डॉक्टर्स को कहा , डॉ संजय सोनी , जिसने मेरी प्लास्टिक सर्जरी की थी , और डॉ हिमांशु आनंद । वहाँ , कितने ही लोग थे , पापा ने उनको , “उनके पापा” की तरह इतना कहा , कि शायद ही किसी ने उनको इतना बोला होगा । पापा , बोलते रहे , किसी कि भी हिम्मत नहीं हुई कि पापा को चुप करवा सकते । क्या नहीं बोला , सब कम से कम 15-20 लोग इस बात के गवाह हैं । बड़ी मुश्किल से वहाँ से पापा को सभी ले आए । इसी बीच हमने अपना इतना बड़ा घर बेचकर , नजदीक ही किराए पर घर ले लिया । वहाँ से हमारा घर बड़े ही आराम से दिखाई देता था । इस घर का नंबर 1400 था । मात्र दस घर छोडकर- मम्मी , लगभग हर रोज़ , देख कर रो ही पड़ती थी । पापा , अक्सर कहते हैं । तीन तरह के लोगों को हमेशा याद रखो , पहले वो, जिनकी वजह से आप मुश्किल में आए , दूसरे , जो लोग आप को परेशानी में अकेला छोड़ कर चले गए , चाहे अपने हो या पराए , वो भी पराए ही हो गए , शायद , किराए के मकान पर , किसी को भी आना पसंद न था । और तीसरे वो , जो सबसे अहम् हैं , जिंहोने किठनाई के वक़्त आपका साथ नहीं छोड़ा । लेकिन तीसरी तरह के लोग मिलते कहाँ हैं ?
पापा सभी से , बस मेरे बारे में ही ओर इस बीमारी को ही लेकर बात करते रहते थे , इस बीच पापा के एक दोस्त , जो पापा का बहुत आदर करते हैं , डॉ कुलदीप , कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं , उन्होने डॉ विकास अंकल , के बारे में बताया और पापा मुझे उनके पास ले गए । उन्होने अपने भाई की बीमारी के बारे में बताया , और कहा कि , मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा , और उन्होने मुझे दवाई देनी शुरू की । होमियोपैथी में , पापा का बहुत विश्वास है , और पापा , खुद भी बहुत पढ़ते रहते हैं । डॉ कुलदीप , जिस तरह से पापा की मदद की , अभी तक कोई भी नहीं कर पाया था । और मैंने बड़ी ईमानदारी से , जैसे पापा ने कहा , वैसे दवाई लेनी शुरू की । डॉ अंकल और अंजलि दीदी ने , बड़ी मेहनत से दवाई बनाते और मुझे देते , आज लगभग 6 महीने हुये हैं , बीच में , कई बार , पस , और हड्डी के छोटे छोटे टुकड़े निकलते रहे , लेकिन मेरा, मम्मी और पापा का बहुत विश्वास था कि मैं ठीक हो जाऊंगा , और जैसा , डॉ अंकल ने कहा था , मैं पहले दिन सी ही अच्छा महसूस करने लग गया था । डॉ अंकल ने मुझे कभी भी बीमार नहीं कहा , और आज मैं , बिल्कुल ठीक हूँ , मेरा होमियोपैथी में बहुत आस्था है , जिस बीमारी का अलोपैथी में , कोई ईलाज़ नहीं , वो डॉ विकास अंकल ने , उस बीमारी को होमियोपैथी से ठीक कर दिया । और , पापा आज वापिस अपने काम पर , मिडिल ईस्ट में भाषा विज्ञान पढ़ा रहे हैं ।
बस , डॉ अंकल ने मेरे साथ साथ पापा का भी ईलाज़ कर दिया , और वे अपने काम पर खुश हैं । मैं परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ , कि डॉ अंकल और उनके परिवार में सदा खुशी और सेहत का वास रखे ॥
आपका
सुकृत्य